आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 93 क्या है (What is IPC section 93 in Hindi), कैसे इसमें अपराध होता है, कितनी सजा सुनाई जाती है, जमानत कैसे होती है, जमानत होती है या नहीं, वकील की ज़रूरत कब लगती है और अपराध करने से कैसे बचा जा सकता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 93 क्या कहती है (What does IPC section 93 says in Hindi), सब कुछ विस्तार से जानेंगे।
आज के इस दौर में कोई किसी के बारे में नहीं सोचता सब कोई बस ख़ुद का ही भला चाहते है फ़िर चाहे उस भले से किसी का नुकसान क्यों ना होरा हो। और यदि कोई किसी की मदद भी करता है तो सब को लगता है कि ख़ुद का कुछ फायदा हो रहा होगा तभी कर रहा है वरना कोई कहाँ करता है किसी की मदद, यदि कोई मदद कर देता है तो बाकियों को दिखाता है कि मैंने इसकी मदद की या बाद में एहसान जाहिर करता है।
यदि कोई मदद करने का सोचता भी है तो मदद लेने वाला व्यक्ति संकोच करता है। तो आज हम ऐसे ही एक धारा के बारे में जानेंगे और देखेंगे कि सद्भावना पूर्वक दी गई संसूचना उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है। यह सभी बातें हम भारतीय दण्ड संहिता की धारा 93 (IPC section 93 in Hindi) में जानेंगे तो आपको यह आर्टिकल अन्त तक पढ़ना है।
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आईपीसी धारा 93 क्या है (What is IPC Section 93 in Hindi)
भारतीय दंड संहिता की धारा 93 के अनुसार सद््भावपूर्वक दी गई संसूचना उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस व्यक्ति की हो जिसे वह दी गई है, यदि वह उस व्यक्ति के फायदे के लिए दी गई हो।
दृष्टांत- क, एक शल्यचिकित्सक, एक रोगी को सद््भावपूर्वक यह संसूचित करता है कि उसकी राय में वह जीवित नहीं रह सकता। इस आघात के परिणामस्वरूप उस रोगी की मौत हो जाती है। क ने कोई अपराध नहीं किया है, वह जानता था कि उस संसूचना से उस रोगी की मौत होने की संभावना है ।
यानी कि सद्भावपूर्वक कुछ कार्य होने से पहले किसी को भी उस कार्य के बारे में बताना, जबकि उसके बताने पर सामने वाले व्यक्ति का भला ही होता है तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
Example: एक व्यक्ति है जो किसी खतरनाक बीमारी से ग्रस्त है और रोज मौत और जिंदगी से लड़ रहा है, किसी दिन एक नर्स उस व्यक्ति को यह कह देता है कि तुम्हारे जीने से अच्छा तो मर ही जाना रोज रोज दुख सहने से अच्छा मर जाना ही है।
अगले ही दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो यह अपराध नहीं माना जाएगा क्योंकि उस व्यक्ति की बीमारी ऐसी थी जो ठीक नहीं हो सकतीं हैं, सिर्फ़ उसमें दुख था। और उसने सिर्फ़ मदद की उसे दुख से आजाद करने में तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
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इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि कैसे किसी को सद्भावपूर्वक बताई गई ससुचना करने पर अपराध नहीं माना जाएगा, जब वह कार्य किसी की भलाई के लिए हो। हमने भारतीय दंड संहिता की धारा 93 (IPC section 93 in Hindi) को बहुत ही आसान भाषा में समझाने की कोशिश की है।
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