Section CRPC 145 in Hindi – सीआरपीसी की धारा 145 क्या है पुरी जानकारी

दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 क्या है (What is section Crpc 145 in Hindi), इस धारा में क्या बताया गया है। कैसे सीआरपीसी की धारा 145 लागू होती है। (How Section 145 of CrPC applies in Hindi) सीआरपीसी की धारा 145 क्या कहती है (What does section Crpc 145 says in Hindi), सब कुछ विस्तार से जानेंगे इसलिए आप ये आर्टिकल लास्ट तक पढ़ते रहना।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा (CRPC) अपराधिक मामले के लिए किए गए प्रतिक्रियाओं के बारे में जानकारी देता है। इसका उद्देश्य आपराधिक प्रक्रिया से संबंधित कानून को मजबूत करना है। दंड देने के लिए जिन प्रक्रियाओं को  न्यायालय द्वारा अपनाया जाता है, उनको ही इस संहिता में समाहित किया गया है।

Section CRPC 145 in Hindi

तो आज हम आपको ऐसे ही एक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के बारे में बताएंगे की कैसे इसमें न्यायालय द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया क्या है और यह किस तरह लागू की जाती है। दंड प्रक्रिया संहिता यानी कि Crpc की धारा 145 क्या है ? इसके सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से यहाँ समझने का प्रयास करेंगे तो आपको यह आर्टिकल अन्त तक पढ़ना है इसके बाद आपको सब कुछ अच्छे से समझ में आएगा।

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दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 145 क्या है (What is Section CRPC 145 in Hindi)

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के अनुसार: जहां भूमि या जल से संबद्ध विवादों से शांति भंग होने की संभावना है वहां प्रक्रिया–

 1  जब किसी मजिस्ट्रेट का, पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से या अन्य किसी जानकारी से यह निर्णय हो जाता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी जगह या जल या उसकी सीमाओं से जुड़ा हुआ विवाद हुआ है, जिससे शांति भंग होने की संभावना है।

तब वह अपना ऐसा निर्णय लेने की बात करता है और ऐसे विवाद से जुड़े हुए पक्षकारों से यह अपेक्षा करते हुए लिखित आदेश देगा कि वे निर्धारित तारीख और समय पर स्वयं  उसके न्यायालय में हाजिर हों और विवाद की विषयवस्तु पर वास्तविक कब्जे के तथ्य के बारे में अपने-अपने दावों का लिखित कथन पेश करें।

 2  इस धारा के प्रयोजनों के लिए भूमि या जल पद के अंतर्गत भवन, बाजार, फसलें, भूमि की अन्य उपज और ऐसी किसी संपत्ति के लाभ भी हैं।

 3  इस आदेश का हर एक प्रति की आज्ञा का पालन इस संहिता द्वारा समनो के अमल के  लिए बनाई गई रीति से ऐसे व्यक्ति पर की जाएगी, जिनका मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश दीया गया हो और कम से कम एक प्रति विवाद के विषय पर या उसके आस पास किसी भी दृश्य पर प्रकाशित की जाएगी।

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 4  मजिस्ट्रेट तब विवाद के विषय को पक्षकारों में से किसी के भी कब्जे में रखने के अधिकार के दाबे के प्रति निर्देश किए बिना उन बातों का, जो ऐसे पेश किए, गए हैं, उनका अनुशीलन करेगा, पक्षकारों को सुनेगा और ऐसी कोई गवाही लेगा जो उनके द्वारा प्रस्तुत किया जाए, ऐसा अति विनिश्चित रिक्त गवाही यदि कोई हो ;

लेगा जैसा वह आवश्यक समझे और यदि संभव हो तो यह करेगा कि क्या उन पक्षकारों में से कोई उपधारा (1) के अधीन उसके द्वारा दिए गए आदेश की तारीख पर विवाद के विषय पर कब्जा रखता था और यदि रखता था तो वह कौन सा पक्षकार था।

मगर यदि मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि कोई पक्षकार उस तारीख के, जिसको पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य जानकारी मजिस्ट्रेट को मिली, ठीक पहले दो मास के अंदर या उस तारीख के बाद और उपधारा (1) के अधीन उसके आदेश की तारीख के पहले बलात् और आरोपी के रूप से बेकब्जा किया गया है।

तो वह यह मान सकेगा कि उस प्रकार बेकब्जा किया गया पक्षकार उपधारा (1) के अधीन उसके आदेश की तारीख को कब्जा रखता था।

 5  इस धारा की कोई बात, हाजिर होने के लिए ऐसे अपेक्षित किसी पक्षकार को या किसी अन्य  व्यक्ति को यह दिखाने  से नहीं रोकेगी कि कोई बात पहले बताई गई हो इस प्रकार का विवाद वर्तमान में नहीं है या नहीं रहा है और ऐसी दशा में मजिस्ट्रेट अपने उक्त आदेश को निरस्त कर देगा और उस पर आगे की सब कार्यवाहियां रोक दी जाएंगी परन्तु उपधारा (1) के अधीन मजिस्ट्रेट का आदेश निरस्त रहते हुए अंतिम होगा।

 6  जब किसी ऐसी कार्यवाही के पक्षकार की मृत्यु हो जाती है तब मजिस्ट्रेट मृत पक्षकार के कानूनी संबधी प्रतिनिधि को कार्यवाही का पक्षकार बनवा सकेगा और फिर जांच चालू रखेगा और यदि इस बारे में कोई प्रश्न उत्पन्न होता है कि मृत पक्षकार का ऐसी कार्यवाही के प्रयोजन के लिए कानूनी संबधी प्रतिनिधि कौन है तो मृत पक्षकार का प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले सब व्यक्तियों को उस कार्यवाही का पक्षकार बना लिया जाएगा।

 7  यदि मजिस्ट्रेट की यह राय है कि उस संपत्ति की, जो इस धारा के अधीन उसके समक्ष लंबित कार्यवाही में विवाद की विषयवस्तु है, कोई फसल या अन्य उपज  जो स्वाभाविक रूप से खराब है तो वह ऐसी संपत्ति की उचित रक्षा  के लिए आदेश दे सकता है और जांच के समाप्त होने पर ऐसी संपत्ति के या उसके विक्रय के आगमों के व्ययन के लिए ऐसा आदेश दे सकता है जो वह ठीक समझे।

 8  यदि मजिस्ट्रेट ठीक समझे तो वह इस धारा के अधीन कार्यवाहियों के किसी प्रक्रिया में पक्षकारों में से किसी के आवेदन पर किसी साक्षी के नाम समन यह निर्देश देते हुए जारी कर सकता है कि वह हाजिर हो या कोई दस्तावेज या चीज पेश करे।

 9  इस धारा की कोई बात धारा 107 के अधीन कार्यवाही करने की मजिस्ट्रेट की शक्तियों को कम करने वाली नहीं समझी जाएगी।

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इस आर्टिकल में हमने पुरी कोशिश की है आपको आसन भाषा में समझाए की दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 क्या है (What is section Crpc 145 in Hindi), इस धारा में क्या बताया गया है। कैसे सीआरपीसी की धारा 145 लागू होती है। (How Section 145 of CrPC applies in Hindi) हम उम्मीद करते हैं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और लाभकारी साबित हुआ होगा अगर आपको पसंद आया है तो अपने साथियों के साथ जरूर शेयर करें।

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