दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 202 क्या है (What is CrPC section 202 in Hindi), कैसे इसमें आदेश जारी किए जाते हैं, किस तरह के मामलों में यह धारा लागू होती है, कब कब यह धारा 202 लागू होती है। दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 202 क्या कहती है (What does CrPC section 202 says in Hindi), सब कुछ विस्तार से जानेंगे बस आप आर्टिकल लास्ट तक पढ़ते रहना।
जब भी किसी व्यक्ति के साथ कोई अपराध होता है तो वह व्यक्ति सबसे पहले पुलिस स्टेशन जाता है रिपोर्ट दर्ज करवाने, मगर पुलिस भी रिपोर्ट दर्ज तभी करती है जब मामला गम्भीर हो या कोई कठोर सबूत हो जिससे अपराध हुआ है यह साबित हो सकें। अक्सर पुलिस समझौता की सलाह देती है अगर मामला गम्भीर ना हो ओर अपराध समझौता करने योग्य हो।
मगर जिस व्यक्ति के साथ अपराध हुआ है और वह समझौता करने से मना कर देता है तब पुलिस को केस दर्ज करना ही पड़ता है, और अगर वह व्यक्ति जिसके साथ अपराध हुआ है वो पुलिस की कारवाई से संतुष्ट नहीं हैं तो वह उच्च न्यायालय में भी आवेदन कर सकता है।
तो आज हम ऐसी ही कुछ बातें इस दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 202 में जानेंगे और देखेंगे कि कैसे इस धारा में न्यायालय आदेश जारी करती है, कब रिपोर्ट दर्ज की जाती है, मामला आगे करवाई करने योग्य है या नहीं सब कुछ विस्तार से जानेंगे तो आपको यह आर्टिकल अन्त तक पढ़ना है।
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सीआरपीसी धारा 202 क्या है (What is CrPC Section 202 in Hindi)
दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 202 के अनुसार: आदेशिका (न्यायालय का वह आज्ञा पत्र जिसमें किसी को न्यायालय में उपस्थित होने की आज्ञा दी जाती है) के जारी किए जाने को कुछ समय के लिए रोकना
1 यदि कोई मजिस्ट्रेट किसी ऐसे अपराध की शिकायत मिलने पर, जिसका संकेत करने के लिए वह प्राधिकृत (authorised) है या जो धारा 192 के तहत उसके हवाले किया गया है, अगर ठीक समझता है तो और ऐसे मामले में जहां अपराधी ऐसे किसी स्थान में निवास कर रहा है जो उस क्षेत्र से परे है जिसमें वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है।
आरोपी के विरुद्ध आदेशिका का जारी किया जाना रोका जा सकता है और यह विनिश्चित करने के प्रयोजन से कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त सबूत है या नहीं, या तो स्वयं ही मामले की जांच कर सकता है या किसी पुलिस अधिकारी द्वारा या अन्य ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसको वह ठीक समझे खोज किए जाने के लिए निर्देश दे सकता है , परंतु खोज के लिए ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया जाएगा;
- जहाँ मजिस्ट्रेट को यह लग रहा होता है कि वह अपराध जिसकी शिकायत की गई है वह सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है।
- जहां शिकायत करने वाला किसी न्यायालय द्वारा नहीं किया गया है जब तक कि शिकायत करने वाले की या उपस्थित साक्षियों की (यदि कोई हो) धारा 200 के तहत शपथ पर जॉच नहीं कर ली जाती है।
Eng: If any magistrate, on receipt of a complaint of an offense which he is authorized to indicate or which has been referred to him under section 192, if it thinks fit [and in the case where the offender is in such a place Is residing which is beyond the area in which he exercises his jurisdiction.
The issuance of an injunction against the accused can be prevented and for the purpose of determining whether there is sufficient evidence to take action, either by investigating the case on its own or by a police officer or by such another person, Which he may direct to conduct a search as he thinks fit, but no such instruction shall be given for the search;
- Where the Magistrate feels that the offense to which the complaint has been made is considered by the Sessions Court.
- Where the complainant has not been made by any court unless the complainant or the witnesses present (if any) have been examined on oath under Section 200.
2 उपधारा (1) के तहत किसी जांच में यदि मजिस्ट्रेट ठीक समझता है तो साक्षियों का शपथ पर गवाही ले सकता है : परंतु यदि मजिस्ट्रेट को यह लग रहा होता है कि वह अपराध जिसकी शिकायत की गई है वह सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो यह शिकायत करने वाले से अपने सब साक्षियों को पेश करने की उम्मीद करेगा और उनकी शपथ पर जॉच करेगा।
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Eng: In any investigation under sub-section (1), if the Magistrate considers fit, the witnesses may testify on oath: but if the Magistrate feels that the offense to which the complaint is made is considered by the Sessions Court, then this complaint The doer will be expected to present all his Witnesses and examine their oath.
3 यदि उपधारा (1) के तहत अपराध किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो पुलिस अधिकारी नहीं है तो उस अपराध के लिए उसे वारंट के बिना गिरफ्तार करने की शक्ति के सिवाय पुलिस थाने के अधिकारी को इस संहिता द्वारा प्रदत्त सभी शक्तियां होंगी।
If the offense under sub-section (1) is committed by a person who is not a police officer, the officer of the police station shall have all the powers conferred by this Code except the power to arrest him without a warrant for that crime.
Note: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि CRPC Section 202 के अनुसार जांच करते हुए, मजिस्ट्रेट को यह विचार करना आवश्यक है कि क्या कोई प्रथम दृष्टया मामला बनता भी है या नहीं और शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही कानून या अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है या नहीं और विवाद पूर्ण रूप से सिविल प्रकृति का है या नहीं और या सिविल विवाद को आपराधिक विवाद का रंग देने की कोशिश की गई है या नहीं।
इस धारा के तहत जांच का दायरा शिकायत में लगाए गए आरोपों तक सीमित है ताकि यह पता निर्धारित किया जा सके कि CRPC Section 202 के तहत प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए या नहीं। या फिर CRPC Section 202 का सहारा लेकर शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया जाना चाहिए कि शिकायतकर्ता के बयान व गवाहों के बयान, यदि कोई है तो, उसके आधार पर कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।
CRPC Section 202 के तहत पूछताछ के चरण में, मजिस्ट्रेट केवल शिकायत में लगाए गए आरोपों या शिकायत में दिए गए सबूतों के समर्थन में दिए गए सबूतों को देखता या विचार करता है ताकि खुद को संतुष्ट कर सके कि आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार है।
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Conclusion
दोस्तों इस आर्टिकल में हमने आपको बताया बहुत ही आसान भाषा में कि सीआरपीसी धारा 202 क्या है (What is CrPC section 202 in Hindi) दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 202 क्या कहती है (What does CrPC section 202 says in Hindi) कैसे मामलों में न्यायालय आगे जांच की अनुमति देती है, किस तरह के मामलों में, कब न्यायालय के पास कोनसे अधिकार है, यह सब बातें हमने सीआरपीसी धारा 202 के तहत जाना और समझा।
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