CRPC Section 397 in Hindi – सीआरपीसी धारा 397 क्या है पुरी जानकारी

दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 397 क्या है (What is CrPC section 397 in Hindi), किस तरह इस धारा में आदेश दिए जाते हैं। सीआरपीसी की धारा 397 में कैसे कारवाई की जाती है, यह धारा किस तरह अप्लाई की जाती है। सीआरपीसी धारा 397 क्या कहती है (What does CrPC section 397 says in Hindi), सब कुछ विस्तार से जानेंगे बस आप आर्टिकल लास्ट तक पढ़ते रहना।

अक्सर देखते है कि अगर किसी मामले में या किसी अपराध के सबूत या गवाह में कोई परेशानी या गलत लगने की संभावना होती है तो न्यायालय ऐसे मामलों को दोबारा जांच करने की या फिर दोबारा से सही तरीके से निरीक्षण करने को कहती हैं। अक्सर ऐसा होता है कि जल्दी जल्दी में या फिर कोई जानबूझकर कुछ गलत कार्य कर देता है या फिर कोई सबूतों के साथ कोई छेड़खानी करता है तब ऐसा होता है।

CRPC Section 397 in Hindi

तो आज हम ऐसे ही एक धारा के बारे में जानेंगे कि कैसे कोर्ट दोबारा जांच करने को कहती हैं, किन मामलों में दोबारा जांच करने को कहती है, कौनसे दस्तावेज मांगती है, किस तरह के मामलों में दोबारा जांच होती है, सब कुछ विस्तार से जानेंगे तो आपको यह आर्टिकल अन्त तक पढ़ना है।

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सीआरपीसी की धारा 397 क्या है (What is CrPC Section 397 in Hindi)

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 397 के अनुसार: पुनः निरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए दस्तावेज मांगना

 1  किसी भी उच्च न्यायालय या फिर कोई सेशन न्यायाधीश अपनी अधिकारिता के भीतर किसी अवर दंड (Inferior penalty) न्यायालय के सामने किसी कार्यवाही के दस्तावेज को, किसी लिखे हुए या बताए गए आदेश के बारे में और ऐसे अवर न्यायालय की किसी कार्यवाहियों को देखने के लिए कि वह नियमित है या नहीं  के बारे में अपना निर्णय करने के आशय से मंगवा सकता है।

और उसकी जांच कर सकता है और ऐसे दस्तावेज मंगवाते समय यह आदेश दे सकता है कि दस्तावेज़ की जांच लटका रहने तक कोई भी निर्णय लेने पर रोक लगा दी जाए और यदि अपराधी जेल में है तो उसे जमानत पर या उसके अपने याचिका पत्र पर छोड़ दिया जाए।

कोई भी मजिस्ट्रेट, चाहे वे कार्यपालक हों या न्यायिक और चाहे वे आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग कर रहे हों, या अपीली अधिकारिता का, इस उपधारा के और धारा 398 के प्रयोजनों के लिए सेशन न्यायाधीश से अबर समझे जाएंगे।

 Eng:  Any High Court or any Sessions Judge may name for and investigate the read of any case before any inferior Criminal Court locate within its or his local jurisdiction for the purpose of satisfying itself or regularity of any proceedings of such inferior Court when calling for such record, direct that the punishment of any case or order is suspended, and if the accused is in jail, that he be released on bail or on his own bond pending the examination of the record.

Any Magistrates  Executive or Judicial, and whether exercising original or appellant jurisdiction, shall be deemed to be inferior to the Sessions Judge for the purposes of this sub-section and of section 398.

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 2  उपधारा (1) में बताई गई पुनः निरीक्षण की शक्तियों का उपयोग किसी अपील, जांच में दोबारा सोचना या अन्य कार्यवाही में बताई किसी आदेश की बात नहीं किया जाएगा।

 Eng:  All powers of revision advised by sub-section (1) shall not be practiced relate to any meeting order passed in any appeal, inquiry, trial, or other proceedings.

 3  यदि कोई व्यक्ति द्वारा इस धारा के भीतर आवेदन या तो उच्च न्यायालय को या सेशन न्यायाधीश को किया गया है तो उसी व्यक्ति द्वारा कोई और आवेदन उनमें से दूसरे के द्वारा  नहीं किया जाएगा।

 Eng:  If any Person under this section has been apply either to the High Court or to the Sessions Judge, no  application by the same person shall be accepted by the other.

पुनः निरीक्षण का एक मुख्य रूप यह है कि पुनः निरीक्षण की मांग अधिकारपूर्वक नहीं की जा सकती बल्कि पुनः निरीक्षण न्यायालय के आदेश पर निर्भर करता है।

यदि वह चाहे तो ही मामले में पुनः निरीक्षण करेगा अन्यथा नहीं करेगा। पुनः निरीक्षण विधि के प्रश्न पर ही किया जाएगा अतः केवल विशेष परिस्थितियों में तथ्य के प्रश्न पर पुनरीक्षण हो सकता है। न्यायालय पुनरीक्षण के आदेश के किसी मामले में सजा को अधिक भी सकता है और कम भी कर सकता है तथा उसे छोड़ (Discharge) भी कर सकता है। पुनरीक्षण दो स्तरों पर होता है प्रारंभिक एवं अंतिम।

Conclusion

इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि कैसे न्यायालय दोबारा जांच करने को कहती है किसी भी मामले में, किस तरह के आदेश देती है। कैसे जब दोबारा जांच चल रही हो तो कोई भी फैसला लेने से रोका जाता है जब तक की दोबारा जांच ना हो जाए, कैसे एक बार जांच होने के बाद दोबारा जांच नहीं हो सकती, सब कुछ न्यायालय के आदेश के अनुसार ही होता है, हमने पूरी कोशिश की है कि आपको यह धारा आसान भाषा में समझाए।

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दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 397 क्या है (What is CrPC section 397 in Hindi) सीआरपीसी धारा 397 क्या कहती है (What does CrPC section 397 says in Hindi) हम उम्मीद करते हैं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और लाभकारी साबित हुआ होगा अगर आपको पसंद आया है तो अपने साथियों के साथ जरूर शेयर करें।

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