CRPC Section 340 in Hindi – सीआरपीसी की धारा 340 क्या है पुरी जानकारी

दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 340 क्या है (What is CrPC section 340 in Hindi), कैसे इसमें न्यायालय आदेश देती है, कौनसे मामलों में सीआरपीसी की धारा के तहत आदेश दिए जाते है, किस तरह आदेश लागू किए जाते है। दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 340 क्या कहती है (What does CrPC section 340 says in Hindi), सब कुछ विस्तार से जानेंगे।

कई मामलों में क्या होता है कि उस मामले की कारवाई चल रही हो और उस मामले का गवाह भी है, जब गवाह को कोर्ट में पेश करते है तब गवाह जूठ बोल देता है या जो सच है वो ना बता कर कुछ गलत बता देता है या गवाही देने से मना कर देता है यानी मुकर जाता है तब न्यायालय फिर से जॉच करने का आदेश देती है कि गवाह ऐसे क्यों मुकरा, क्या वजह है, कहीं जानबूझकर तो नहीं कर रहा है।

CRPC Section 340 in Hindi

तो आज हम ऐसे ही एक धारा के बारे में जानेंगे और देखेंगे कि कैसे जब कोई जूठ बोलता है या मुकर जाता है तब न्यायालय क्या आदेश देती है, कैसे मामले की जांच को आगे बढ़ाया जाता है, कैसे सच साबित किया जाता है तो आपको यह आर्टिकल अन्त तक पढ़ना है।

सीआरपीसी की धारा 340 क्या है (What is CrPC Section 340 in Hindi)

दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 340 के अनुसार : आईपीसी धारा 195 में बताए गए मामलों में प्रक्रिया

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 1  जब भी किसी न्यायालय की, उसे इस लक्ष्य से किये गए आवेदन पर या फिर, यह राय है कि यह न्याय के हित में सही है कि धारा 195 की उपधारा (1) के खंड ब में बताए गए किसी अपराध की जो उसे जैसी स्थिति हो, उसी के अनुसार उस न्यायालय की कारवाई में या उसके संबंध में या न्यायालय की कारवाई में पेश की गई या गवाह में दिए गए दस्तावेज के बारे में किया हुआ लगता है, जांच की जानी चाहिए तब ऐसा न्यायालय ऐसी प्रारंभिक जांच के बाद यदि कोई हो, जैसी वह आवश्यक समझे,

  •  उस भाव का नतीजा लिख सकता है,
  • उसकी लिखित में शिकायत कर सकता है,
  • उसे किसी भी न्यायालय के मजिस्ट्रेट को भेज सकता है,
  • ऐसे किसी मजिस्ट्रेट के सामने मुलजिम के हाजिर होने के लिए पर्याप्त जमानत राशि ले सकता है या यदि किया हुआ अपराध अजमानतीय है और न्यायालय ऐसा करना जरूरी समझता है तो मुलजिम को ऐसे किसी मजिस्ट्रेट के पास कस्टडी में भेज सकता है,
  • ऐसे मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होने और सबूत देने के लिए किसी व्यक्ति को प्राप्त कर सकता है।

 Eng:  When an application made to it in this behalf or, any Court is of opinion that it is expedient in the interests of justice that an inquiry should be made into any offence referred to in clause (b) of sub- section (1) of section 195.

which appears to have been committed in or in relation to a proceeding in that Court or, as the case may be, in respect of a document produced or given in evidence in a proceeding in that Court, such Court may, after such preliminary inquiry, if any, as it thinks necessary,

  1. Register a finding to that effect,
  2.  make a charge in writing,
  3. send it to a Magistrate of having jurisdiction,
  4. take efficient security for the appearance of the suspect to  Magistrate, or if the alleged offense is non-bailable and the Court thinks it necessary so to do, send the suspect in custody to  Magistrate,
  5. Holdover any person to appear and give evidence to Magistrate.

 2  किसी भी अपराध के बारे में न्यायालय को उपधारा (1) में बताई गई शक्ति का इस्तेमाल, ऐसे मामले में जिसमें  न्यायालय ने उपधारा (1) के भीतर उस अपराध के बारे में न तो शिकायत किया है और न ऐसे शिकायत के किए जाने के लिए आवेदन को नामंजूर किया है, उस न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसका  ऐसा पहले बात हो चुका हो जो  न्यायालय धारा 195 की उपधारा (4) के अर्थ में अधीनस्थ है।

 Eng:  The power bestowed on a Court by sub- section (1) in respect of an offence may, in any case where that Court has neither made a charge under sub- section (1) in respect of that offence nor rejected an application for the making of such charge, be examined by the Court to which such former Court is dependent within the meaning of sub- section (4) of section 195.

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 3  इस धारा के अन्दर की गई शिकायत पर हस्ताक्षर,

  • जहां शिकायत करने वाला न्यायालय उच्च न्यायालय है वहां उस न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा किए जाएंगे, जिसे वह न्यायालय नियुक्त करे;
  • किसी ओर मामले में, न्यायालय के अध्यक्ष अधिकारी द्वारा या न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा, जिसे न्यायालय इस लक्ष्य लिखित में ऑथराइज्ड किए जाएंगे।

 Eng:  A charge made under this section shall be signed,-

  1. where the Court making the charge is a High Court, by such officer of the Court as the Court may appoint;
  2. in  other case, by the presiding officer of the Court.

 4  इस धारा में “न्यायालय” का  अर्थ है जो धारा 195 में है।

 Eng:  In this section, ” Court” has the same meaning as in section 195.

असल में होता यह है कि  यदि कोई गवाह पुलिस या मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान से मुकरे, तो उसे मुकरा हुआ गवाह माना जाता है। अगर कोई सरकारी गवाह मुकर जाए, तो सरकारी वकील उसके साथ जिरह करता है और सच्चाई निकालने की कोशिश करता है।

लेकिन इस प्रक्रिया में अदालत यह देखती है कि कौन से ऐसे गवाह हैं, जिन्होंने जानबूझकर अदालत से सच्चाई छुपाई या फिर झूठ बोला। ऐसे गवाहों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा-340 के तहत अदालत शिकायत करती है। 

 Example  रमेश का एक दोस्त है राजू जिसके साथ कुछ दिन पहले एक अपराध हुआ, जिस वक्त अपराध हुआ उस वक्त राजू के साथ रमेश भी था तो ऐसे में रमेश अपराध का गवाह बना चुकी उसने पूरा अपराध जो भी राजू के साथ हुआ वो सब देखा है। जब न्यायालय में राजू के मुजरिम को पेश किया जाता है।

तब रमेश को भी हाज़िर होने को कहा जाता है क्यूंकि उसे गवाही देनी थी, रमेश को न्यायालय में बुलाया जाता और आदेश दिया जाता की जो सच है वो बताए पर रमेश जूठ बोल जाता है, तब ऐसे में न्यायालय मामले की दोबारा जांच करने को कहती है और जो सच हैं उसे साबित करने को कहती है।

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Conclusion

इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि कैसे किसी गवाह के मुकर जाने या जूठ बोलने पर सीआरपीसी 340 लगा कर दोबारा मामले की जांच की जाती है, कैसे आदेश देती है न्यायालय, किस तरह के मामलों में ऐसे आदेश दिए जाते है सब कुछ विस्तार से बताया बहुत ही आसान भाषा में,

दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 340 क्या है (What is CrPC section 340 in Hindi) दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 340 क्या कहती है (What does CrPC section 340 says in Hindi) हम उम्मीद करते हैं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और लाभकारी साबित हुआ होगा अगर आपको पसंद आया है तो अपने साथियों के साथ जरूर शेयर करें।

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