दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि सीआरपीसी की धारा 438 क्या है (What is Crpc section 438 in Hindi), इस में न्यायालय कैसे फैसला सुनाते है, किस तरह आदेश जारी किए जाते हैं, सीआरपीसी की धारा 438 कब लागू होती है, (When does CRPC Section 438 apply in Hindi) इसमें क्या क्या प्रावधान दिए गए है, सब कुछ विस्तार से जानेंगे बस आप आर्टिकल लास्ट तक पढ़ते रहना।
अक्सर हम देखते है कि यदी कोई अमीर व्यक्ति या कोई प्रसिद्ध व्यक्ति कुछ गलत काम कर देता है तो उसके कोर्ट जाने से पहले ही या उसे सजा सुनाने से पहले ही उसको जमानत मिल जाती है। वह व्यक्ति मजिस्ट्रेट से बात कर या उच्च न्यायालय में सजा सुनाने से पहले ही जमानत की याचिका दायर कर देता है ताकि उसे जेल ना जाना पड़े या फिर उसे कम सजा सुनाई जाए।
तो आज हम ऐसे ही एक Crpc Section 438 के बारे में जानेंगे और देखेंगे कि कैसे इसमें न्यायालय द्वारा आदेश दिया जाता है और क्या प्रावधान बताए गए है, किस तरह आदेश ना मानने पर क्या होता है, सब कुछ विस्तार से जानेंगे तो आपको यह आर्टिकल अन्त तक पढ़ना है। ताकि आपको सब कुछ अच्छे से समझ में आ जाये।
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दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 438 क्या है (What is CRPC Section 438 in Hindi)
दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 438 के अनुसार “गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर करने के लिए निर्देश“
जब कभी किसी व्यक्ति को लगता है कि जो वो अपराध किया है वो एक अजमानतीय अपराध है जिसमें वह गिरफ़्तार हो सकता है तो वह इस धारा के अंतर्गत किसी उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में आवेदन कर सकता है की उसे ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में जमानत देकर छोड़ दिया जाये और न्यायालय अन्य सभी बातों के विचारों के साथ-साथ निम्न बातों को ध्यान में रखकर, –
- आरोपी का इतिहास और अपराध की गंभीरता
- आवेदक का पूर्व इतिहास जिसमें यह तथ्य भी सम्मिलित है कभी पूर्व में किसी संज्ञेय अपराध के मामले में न्यायालय द्वारा दोषी साबित होने पर कारावास का दण्ड भोगा है या नहीं,
- आवेदक की न्याय से भोगने कि संभावना
- आवेदक को गिरफ्तार करके उसे चोट पहुंचाने या अपमानित करने के उद्देश्य से आरोप लगाया गया है,
- या तो आवेदक को तत्काल अस्वीकार किया जायेगा या अग्रिम जमानत देने का आखरी आदेश दिया जाएगा:
Eng: When a person has reason to consider that he may be caught on an allegation of having committed a non-bailable offense, he may go to the High Court or the Court of Session for a direction under this section; and that Court may if it thinks fit, direct that in the event of such arrest, he shall be released on bail.
परन्तु जहाँ जैसी स्थिति हो उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय ने इस उपधारा के अधीन कोई आखिरी आदेश नहीं दिया है या अग्रिम जमानत प्रदान करने के आवेदन को अस्वीकार कर दिया है, तो पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी का यह विकल्प खुला रहेगा कि ऐसे आवेदन के आशंकित आरोप के आधार पर आवेदक को बिना वारंट गिरफ्तार कर ले।
जब न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (1) के अंतर्गत निर्देश देता है तब वह उस विशेष मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन निर्देशों में ऐसी शर्तें, जो वह ठीक समझे, शामिल कर सकता है जिनके अंतर्गत निम्नलिखित भी है:–
- यह शर्त कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देने के लिए किसी भी हालत में हो उपस्थित रहेगा,
- यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते किसी प्रकार का कोई डर या धमकी नहीं देगा,
- यह शर्त कि वह व्यक्ति न्यायालय की अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ेगा,
- अन्य शर्तें जो धारा 437 की उपधारा (3) के अनुसार ऐसे चार्ज्ड की जा सकती है मानो उस धारा के अनुसार जमानत मंजूर की गई है।
Eng: When the High Court or the Court of Session makes a direction under sub-section (1), it may let in such conditions in such directions in the light of the facts of the particular case, as it may think fit, including-
- A condition that the person shall make himself present for interrogation by a police officer as and when required;
- A condition that the person shall not, directly or indirectly, make any seduction, threat or promise to any person with the facts of the case so as to deter him from disclosing such facts to the Court or to any police officer;
- A condition that the person shall not leave India without the permission of the Court;
- Such other conditions may be imposed under sub-section (3) of section 437 as if the bail were granted under that section.
यदि उसके बाद ऐसे व्यक्ति को ऐसे चार्ज्ड पर पुलिस थाने के अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह या तो गिरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है।
तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा, तथा यदि ऐसे अपराध का केस सॉल्व करने वाला मजिस्ट्रेट यह निश्चय कराता है कि उस व्यक्ति के विरूद्ध प्रथम बार ही वारंट जारी किया जाना चाहिए, तो वह उपधारा (1) के अधीन न्यायालय के निदेश के अनुरूप जमानतीय वारण्ट जारी करेगा।
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Eng: If such person is arrested without warrant by an officer of a police station on such charge and is prepared either at the time of arrest or at any time while in the custody of such officer to give bail, he shall be released on bail;
If a Magistrate taking cognizable of such offense decides that a warrant should issue in the first instance against that person, he shall issue a bailable warrant in conformity with the direction of the Court under sub-section (1).
अग्रिम जमानत क्या है (What is Anticipatory Bail। in Hindi)
अग्रिम ज़मानत (Anticipatory bail) न्यायालय का वह निर्देश है जिसमें किसी व्यक्ति को उसके गिरफ्तार होने के पहले ही ज़मानत दे दी जाती है और आरोपी को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जाता।
भारत के आपराधिक कानून के अंतर्गत गैर-ज़मानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका पर कोई भी व्यक्ति अग्रिम ज़मानत के लिये आवेदन कर सकता है।
गौरतलब है कि न्यायालय सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम ज़मानत दे सकती है तथा यह ज़मानत पुलिस की जाँच होने तक जारी रह सकती है।
अग्रिम ज़मानत का प्रावधान भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 में किया गया है। भारतीय विधि आयोग ने अपने 41वें प्रतिवेदन में इस प्रावधान को दंड प्रक्रिया संहिता में सम्मिलित करने की अनुशंसा (सिफारिश) की थी।
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा कि अग्रिम ज़मानत (Anticipatory Bail) के लिये कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती है और यह मुकदमे के अंत तक भी जारी रह सकती है।
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इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि सीआरपीसी की धारा 438 क्या है (What is Crpc section 438 in Hindi), सीआरपीसी की धारा 438 कब लागू होती है, (When does CRPC Section 438 apply in Hindi) कैसे न्यायालय उसे निर्देश देती जिनका पालन कर उसे जमानत दे दी जाती है, और साथ यह भी जाना की अग्रिम जमानत क्या होती है कैसे यह अभी चर्चा में हैं। इन धाराओं से भले ही हमारा सामना नहीं होता हो मगर इन सभी बातों का जानना हमारे लिऐ काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।
हमने पूरी कोशिश की है इस धारा को आसान भाषा में समझाने की, हम उम्मीद करते हैं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और लाभकारी साबित हुआ होगा अगर आपको पसंद आया है तो अपने साथियों के साथ जरूर शेयर करें।