आज हम आपको बताने जा रहे है की आइपीसी धारा 308 क्या है (IPC 308 in Hindi) , इसके बारे में जानना हमारे लिए बहुत जरूरी है तो हम आपको बताएंगे कि आइपीसी की धारा 308 क्या कहती है (what does IPC 308 says in Hindi) और इसके बारे में ओर भी बहुत कुछ बताएंगे।
आजकल देखने को मिलता है कि कोई किसी का अपना नहीं होता। हर कोई आदमी किसी दूसरे व्यक्ति से ईर्ष्या रखता है तो वह किसी ना किसी बहाने से जानबूझकर दूसरे व्यक्ति के साथ कुछ गलत करने का सोचता है। ऐसे में अगर वो किसी की हत्या कर देता है तो उसपे क्या धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है। आज हम जानेंगे ऐसी ही एक धारा के बारे में और समझने की कोशिश करेंगे की आखिर क्या होता है (IPC 308 in Hindi) धारा 308 में।
इस धारा के तहत हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि इस धारा में किस तरह अपराध करने पर क्या सजा दी जाती है और कैसे जमानत होती है। यह धारा क्यों खास है, इसमें वकील की ज़रूरत होती है या नहीं यह सब जानकारी दी जाएगी तो आपको यह आर्टिकल अंत तक पढ़ना है।
धारा 308 क्या होता है। (IPC 308 in Hindi)
भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के अनुसार ऐसे कोई इरादे से ऐसी कोई परिस्थिति में काम करता है जिससे वह किसी की मौत का कारण बन जाए, तो वह गैर इरादतन हत्या (जो हत्या करने से वास्ता नहीं रखता हो) का दोषी पाया जाता है। उसे एक अवधि के लिए कारावास और आर्थिक जुर्माना या फिर दोनों से ही दंडित किया जाता है। इस धारा में आरोपी की सज़ा को तीन साल तक बढ़ाया भी जा सकता है।
जब उसपे पहले से ही अरोप लगा है और वह दोषी है फिर भी अगर वो ऐसा कुछ दोबारा करने की कोशिश करता है तब ऐसे मामलों में आरोपी की सज़ा के तीन साल तक और बढ़ाया जा सकता है।
यदि ऐसे किसी कार्य से किसी व्यक्ति को कोई चोट लग जाती है तो ऐसे में आरोपी को एक अवधि की कारावास और आर्थिक जुर्माना लगाया जाता है। लेकिन अपराध होने के बाद भी अगर अपराधी दोबारा ऐसा कुछ कार्य करने की कोशिश करता है तो उसकी सज़ा को सात साल तक बढ़ाया जा सकता है।
यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
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धारा 308 में सजा का प्रावधान
- भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के अनुसार गैर इरादतन (हत्या करने का इरादा ना हो) तरीक़े से हत्या करने पर आरोपी को तीन साल की सजा और आर्थिक जुर्माना लगाया जाता है या फिर दोनों से दंडित किया जाता है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा के अनुसार यदि ऐसे किसी कार्य से किसी व्यक्ति को कोई चोट लग जाती है तो उसे सात साल की कारावास और आर्थिक जुर्माना या फिर दोनों से दंडित किया जाता है।
धारा 308 में जमानत का प्रावधान (Bail Provision in IPC Section 308 Hindi)
भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के अंतर्गत यह एक गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है जिसमें किसी भी आरोपी को ज़मानत मिलना काफ़ी मुश्किल है। इस अपराध में किसी भी दोषी को निर्दोष साबित करना काफी मुश्किल है। इस अपराध के लिए ज़मानत देने के लिए न्यायालय को काफ़ी सोच विचार कर निर्णय लेना पड़ता है.
ताकि आगे चलकर कोई बड़ा मामला ना हो। इस में अगर आरोपी उच्च न्यायालय में भी जमानत के लिए याचिका दायर करता है तो वहाँ भी उसकी याचिका को निरस्त कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में पुलिस आरोपी को केस दर्ज होते ही गिरफ्तार कर लेती है।
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धारा 308 में वकील की ज़रूरत क्यों होती है।
भारतीय दंड संहिता में यह एक गैर जमानती अपराध है जिसमें किसी भी व्यक्ति को ज़मानत मिलना मुश्किल है ऐसे में उसे एक वकिल ही बचा सकता है। अगर वकील अपने क्षेत्र में निपुण हैं तो वह आरोपी को आसानी से ज़मानत दिलाने में सहायक सबित हो सकता है। ऐसे मामलों में हमें एक वकील को नियुक्त करना चाहिए जो हमारी सही मायनों में मदद कर सकता है।
हमने आपको इस आर्टिकल में यह बताया की इस धारा में क्या होता है (What is IPC 308 in Hindi) और कैसे जमानत और सजा होती है। भले ही हम कानून की पढ़ाई नहीं कर रहे हो लेकिन यह सब के बारे में जानकारी हमें होनी चाहिए। यह धारा काफ़ी महत्वपूर्ण है कभी भी हमारे दैनिक जीवन में काम आ सकती है।। अगर यह आर्टिकल आपको लाभकारी लगा हो तो अपने साथियों के साथ जरूर शेयर करें।