आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आईपीसी धारा 105 क्या है (What is IPC section 105 in Hindi), आईपीसी धारा 105 में कैसे अपराध होता है, कितनी सजा सुनाई जाती है, जमानत कैसे होती है, जमानत होती है या नहीं, वकील की ज़रूरत कब लगती है यह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 105 क्या कहती है (What does IPC section 105 says in Hindi), सब कुछ विस्तार से समझाने की कोशिश करेंगे।
भारत सरकार हर एक व्यक्ति के शरीर और संपत्ति की रक्षा करने का कर्तव्य रखता है। यदि किसी भी राज्य में किसी व्यक्ति को कोई खतरा होता है तो उस राज्य का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों के अधिकारों और उनके शरीर की रक्षा करें और उनकी संपत्ति की रक्षा करें। भारत के हर व्यक्ति को अपने शरीर और संपत्ति की रक्षा करने का अधिकार भी प्रदान किया गया है।
शरीर और संपत्ति की रक्षा करने हेतु कानून ने भी अनुमति दी क्योंकि राज्य पर भी व्यक्ति के शरीर की रक्षा का हक होता है मगर यह मुमकिन नहीं है कि हर जगह वही हमारे अधिकारों की रक्षा कर सके, कुछ जगहों पर व्यक्ति को विशेष अधिकार दिया गया है वह खुद भी अपने शरीर और अपनी संपत्ति की रक्षा कर सकता है। जैसा कि हम अच्छे से जान चुके हैं कि आपराधिक मामलों में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार एक अहम् एवं जरुरी अधिकार है।
तो आज हम ऐसे ही एक धारा के बारे में जानेंगे और देखेंगे कि सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब प्रारंभ होता है और कब तक बना रहता है। यह सभी बातें हम भारतीय दण्ड संहिता की धारा 105 (IPC section 105 in Hindi) में समझाने की कोशिश करेंगे तो आपको यह आर्टिकल अन्त तक पढ़ना है।
Most Read: IPC Section 103 in Hindi – आईपीसी धारा 103 क्या है
आईपीसी धारा 105 क्या है (What is IPC Section 105 in Hindi)
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 105 के अनुसार किसी भी व्यक्ति की सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब लागू होता है जब सम्पत्ति पर खतरे की संभावना शुरू होती है। सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के खिलाफ़ अपराधी के सम्पत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक या किसी लोक प्राधिकारी की सहायता लेने तक बनी रहती है।
किसी भी सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के खिलाफ़ तब तक बना रहता है जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या कोई नुकसान करता रहता है या हानि करने का प्रयत्न करता रहता है।
किसी भी सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार आपराधिक अतिचार या अमंगल और हानि के खिलाफ़ तब तक बना रहता है जब तक अपराधी आपराधिक नुकसान करता रहता है।
किसी भी की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार आपराधिक रात्री गृह भेदन (जो कोई सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले घर में घुसता है) के खिलाफ़ तब तक बना रहता है जब तक गृह भेदन अतिचार (किसी को धमकी देकर घर में घुसना) आरम्भ होकर होता रहता है।
आसान भाषा में: आसान भाषा में समझाने की कोशिश करें तो सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब शुरू होता है जब सम्पत्ति के खतरे की आशंका प्रारम्भ होती है और तब तक बनी रहती है जब तक किसी लोक प्राधिकारी से सहायता के लिये आवेदन या सहायता प्राप्त न कर ली जाये या फिर जब तक खतरे की आशंका बनी रहती है।
Most Read: IPC Section 102 in Hindi- आईपीसी धारा 102 क्या है
इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब प्रारंभ होता है और कब तक बना रहता है। यह सभी बातें हमने आपको भारतीय दण्ड संहिता की धारा 105 (IPC section 105 in Hindi) में बहुत ही विस्तार और आसान भाषा में समझाने की कोशिश की है।
हम उम्मीद करते हैं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और लाभकारी साबित हुआ होगा अगर आपको पसंद आया है तो अपने साथियों के साथ जरूर शेयर करें।